पृथ्वी के चारों ओर पाये जाने वाले गैसों के आवरण को ‘वायुमण्डल’ कहते हैं, जिससे जीवों को जीवन जीने योग्य दशा तथा वायु प्राप्त होती है।
पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद वायुमण्डल में हाइड्रोजन एवं हीलियम की अधिकता थी, जो सौर पवनों के कारण पृथ्वी से दूर हो गए।
प्रारंभिक वायुमण्डल में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाइआक्साइड, मीथेन, अमोनिया एवं निआन अधिक मात्रा में थे, जबकि आक्सीजन बहुत कम थी।
पृथ्वी के शीतलन के साथ-साथ जलवाष्प का संघनन शुरू हुआ एवं वर्षा आरंभ हुई। CO2 के वर्षा जल में घुलने से तापमान में कमी हुई।
कालांतर में शैवालों तथा पौधों का विकास हुआ तथा प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई फलतः आक्सीजन के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई और वायुमण्डल में स्वतंत्र आक्सीजन के स्तर में वृद्धि होने लगी।
पृथ्वी की सतह से ऊपर की तरफ जाने पर वायुमण्डलीय गैसों की सघनता में कमी आती जाती है एवं स्थलीय सतह की अपेक्षा समुद्री सतह पर वायुमण्डलीय सघनता अधिक होती है।
वायुमण्डल में नाइट्रोजन (78.08 प्रतिशत) तथा आक्सीजन (20.95 प्रतिशत) प्रमुख रूप से पाई जाती है तथा शेष 1 प्रतिशत में कार्बन डाइआक्साइड तथा अन्य गैसें सम्मिलित हैं।
वायुमण्डल पृथ्वी के लिए एक कंबल की तरह कार्य करता है, जिसके कारण दिन एवं रात का तापांतर अधिक नहीं रहता है। यदि यह वायुमण्डल न हो तो पृथ्वी भी चंद्रमा की भांति दिन में अधिक गर्म एवं रात में बहुत अधिक ठण्डी होती।
अन्य प्रमुख तथ्य
पृथ्वी की आयु निर्धारित करने के लिए 'डेटिंग विधि' का प्रयोग किया जाता है।
धरती पर मौजूद प्रत्येक जीव में कार्बन उपस्थित है।
जीवों/कार्बनिक पदार्थो की आयु निर्धारित करने में ‘कार्बन डेटिंग विधि’ का प्रयोग किया जाता है।
वैज्ञानिक जीवन की उत्पत्ति को एक तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया मानते हैं।